रेशमी पाश

© उज्वला सबनवीस
“अरे  किती  लोळतोस  यश ,  जा  जरा  फिरुन  ये  बरं “.
आईच्या  या  म्हणण्यावर   यशने  फक्त  कुस  बदलली , अन  पुन्हा  डोळे  बंद  केले .
” अगं  अमिता , झोपु  दे  लेकराला ” .आजीच्या  या  वाक्याने  खुश  होत  यश  हसला .
”  लेकरु ? अगं  आई  २७  वर्षाचा  घोडा  झालाय  तो .आता  लग्नाचं  बघायलाच  हवय .”
”  अहो  वन्स , आपल्या  या  गावातलीच  बघु  एखादी  सुबक  ठेंगणी ” . मामीने  आपले  मत  नोंदवले.

तशी  नुकतीच  लग्न  झालेली   मामीची  मुलगी  गौरी  पण  बोललीच ” हो  ग  आत्या  आपल्या  कोकणातलीच  घारी , गोरी  बघुया.”
ही  सगळी  चर्चा  यश , ऐकुन  न  ऐकल्या  सारखा  करत होता .
खुप  वर्षांनी  तो  मामा  कडे  आला  होता .लहानपणी  दरवर्षी  येउन  मामा  मामी  कडुन  तो  भरपुर  लाड  करुन  घ्यायचा  . मामाचा  लाडका  भाचा  होता   .हळुहळु  मोठा    होत  गेला , अभ्यास  वाढला , तरीही  दोन  दिवसा करता  पण  का  होईना  तो  कोकणात  येतच  होता .
आता  मात्र  या  आठ  दहा  वर्षात  येणं  झालं  नव्हतं .क्षेत्र  विस्तारले .

या वेळी  मात्र  आई  बाबांनी  खुप  आग्रह  धरला .अन  ते  सगळे  मामाकडे  आले . यशचा  छान  आराम  चालला  होता .तसही  या  छोट्या  गावात  कुठे  जाणार  फिरायला , म्हणुन  तो  लोळत  पडला  होता .
पण  आईची  कुरकुर  सुरुच  होती .
यश  पुन्हा  म्हणाला , ” करु  दे  बरं  आराम मला . अगं , मामी  मोठी  सुग्रण  रोज रोज  पोळी  शिकरण , असं  माझं  छान  चाललय , तुला  का  पाहवत  नाहीये . “
” उठा  आता  चिरंजीव , संध्याकाळ  होत  आलीय .आता  मामाचा  गाव  मोठा  , सोन्या  चांदीच्या  पेठा , जा  जरा  बघ  गाव  किती  बदलय  ते .” बाहेरुन  आलेल्या  मामानेही  आता  या  प्रसंगात  उडी  घेतली .

आता  मात्र  यशचा  नाईलाज  झाला  . तो  कसातरी  उठुन  बसला .
बाहेर  संध्याकाळ  दाटुन  आली  होती. आभाळही  भरुन  आलं  होतं . केंव्हाही  पाउस  पडेल  असं  वाटत  होतं . 
यश  अंगणात  आला .
मामाचं  अंगण  मोठं  होतं .सुपारीचे , नारळ , आंब्याचे  झाडे  होती . हवा  छान  सुटली  होती .फार  प्रसन्न  वाटत  होतं .
मुंबईच्या  रोजच्या  धकाधकीच्या  रुटीन  मधे  हा  ब्रेक  फार  सुखावह  वाटत  होता .
” यश  लायब्ररीतुन  हे  जरा  पुस्तकं  बदलुन  आणतोस  का ?   पंधरा  दिवस  होउन  गेलेत , मला  लेट  फी  पडेल .” मामीने  हातात  पुस्तके  आणुन  दिली .

”  जा  हो  यश  , रस्त्यात  दिसेल  , एखादी  सुबक  ठेंगणी ,”. गौरीने  त्याची  फिरकी  घेतली .
” ह्या , शक्यच  नाही .या  छोट्या  गावात  कसली  मिळतेय  मला  माझी  स्वप्न  परी  .माझी , माझी  मुंबईतलीच  धिटकुली  बरी .” यश  हसत म्हणाला .
” कोणी  बघितली  असेल  तर  सांग  हो  यश ” मामी बोलली. 
” नाही  ग  मामी .मी  आपला  आईबाबांचा  आज्ञाधारक पुत्र  आहे .” यश  पुस्तके  उचलत  म्हणाला .

नाईलाजनेच , यश  निघाला . पण  मग  मात्र  त्याचं  मन छान  प्रसन्न  झालं . मामाचं  गाव  खरोखर  खुप  आखीव  रेखीव  होतं . मधुन  जाणारा  चकचकीत  डांबरी  रस्ता , बाजुची  लाल  माती , नारळाचे  झाडं , लाल  कौलाची  एक  सारखी  घरं  .
हा  आपला  रमत  गमत  चालला  होता.  अंधार  दाटुन  आला .वातावरण  कुंद  झाले  होते .केंव्हाही  पाउस  पडु  शकणार  होता. आता  मात्र  त्याने  चालण्याचा  वेग  वाढवला .
तो  वाचनालयात  पोचला , अन  लाईट  गेले .
तो  धडपडत  कसाबसा  आत  गेला . तिथे  मिट्ट  काळोख होता .याने  घाईघाईत  मोबाईल  पण  आणला  नव्हता .एवढे  कसे  वेंधळे  आपण .तो  स्वतःवरच  चिडला .

तेवढ्यात  एक  तुसडा   आवाज  आला , ”  कोणी  आलय  का ? .आहे  तिथेच  उभे  रहा .मी  मेणबत्ती  लावते .” यश आता  खिळल्या सारखा  उभा  होता .
आवाजा  वरुन   मोठ्ठी  चष्मेवाली  बाई असेल  असं  वाटलं त्याने  घाम  पुसला . अन  तेवढ्यात  लाईट  आले .
समोर  ती   उभी  होती . हातात मेणबत्ती  धरुन . यश  तिच्याकडे  बघतच  राह्यला . ती  कोणी  मोठ्ठी  बाई  नव्हती तर  सुबक  ठेंगणी , गोरीपान  मुलगी  होती .
तो  टक  लाउन  बघत  असतानाच  , तिने  भरकन  मेणबत्ती  बंद  केली .

अन  कमालीच्या  रुक्ष  आवाजात  म्हणाली , ” लवकर  पुस्तके  घ्या .वाचनालय  बंद  व्हायची  वेळ  झाली  आहे .” अन ती  आपल्या  जागेवर  जाउन  बसली .यशने लगेच तिच्या  समोरची  पाटी  वाचली ,” उर्वशी  कामत , ग्रंथपाल .”
यश  नुसतेच  पुस्तके  चाळत  होता . सगळं  लक्ष  उर्वशी कडे  होतं .ती  सारखी  घड्याळात  पाहत  होती .
पुन्हा  ती  जरा  जोरातच  म्हणाली , ” प्लीज  लवकर  घ्या  पुस्तके .आठ  म्हणजे  आठला  मी बंद  करेन  वाचनालय .”
” अहो  आमच्या  मुंबईला  एवढ्या  लवकर  काहीच  बंद  होत  नाही ” .यश  संभाषण  वाढावं  म्हणुन  उगाच  बोलला .

”  ही  मुंबई  आहे  का ?  नाही न , मग इथे  स्थानिक  नियमच  लागतील .” ती  वसकन  बोलली .
तसा  यश  सटपटला .मग  मात्र  त्याने , जे  समोर  दिसतील  ते  पुस्तक  उचलले .अन  तो  बाहेर  आला .
पण  मन  मात्र  आतच  अडकलं  होतं .
तो  बाहेर  आला  अन  जोरात  पाउस   चालु  झाला .त्याने  छत्री  पण  आणली  नव्हती .तो  हताश  पणे  बाहेर  बघत  होता . तेवढ्यात  उर्वशी  बाहेर  आली . तिने  आपली  नाजुक  छत्री  उघडली .एका  हातात  बॅग , दुस-या  हाताने  ती   छत्री  सांभाळत  होती  .

वारा  जोरात  होता .तिचे  केस  भुरभुर  उडत  होते . ओढणीही  हवेने  उडत  होती .काय सावरु असं  तिला  झालं  होतं .यश , तिची  ही  तारांबळ  मस्त  एंजाॅय  करत  होता .त्याची  विकेट  पडली  होती .उर्वशी  त्याला फार  आवडुन  गेली .
ती   निघुन  गेली , तरी  यश  जागीच खिळला  होता .
पाउस  कमी  झाला , तसा  तोही  घरी  गेला .पण  रात्री  झोपेतही  त्याला  फक्त  उर्वशीच  दिसत  होती  .
उद्या  काय  बहाण्याने  लायब्ररीत  जावे , या  विचारात  असतानाच  निद्रा  देवीने  त्याला  आपल्या  कवेत  घेतले .

सकाळी  तो  मामी  कडुन  अंदाज  घेत  राह्यला . पण  मामीला , तो  उर्वशी  बाबत  फारसा  विचारु  शकला  नाही . कोणाला  संशय  येण्या  आधीच  त्याने  वाचनालय हा  विषय  संपवला .
संध्याकाळी  त्याचे  पाय  आपोआपच  वाचनालया कडे  वळले . तो पुस्तके  चाळत  राह्यला .पण लक्ष  मात्र  तिच्याच  कडे .तिच्या  करवंदी  डोळ्याच्या  तो  प्रेमात  पडला  होता , की  तिचा  केतकी  वर्ण  त्याला  आवडला होता   की  तिचे  मोठ्ठे  काळेभोर  केस  त्याची  नजर  गुंतवत  होते. की  तिचे  सरळ  चाफेकळी  नाक  त्याला  मोहवत  होते .की  तिचा  ठेंगणा , ठुसका  बांधा  त्याच्या  मनात  रुतला  होता .हे  त्याला  काहीच  ठरवता  येत  नव्हते .

उर्वशीच्या  प्रेमात  तो  आकंठ  बुडाला  होता . आई , सारखी  मागे  लागलीय   न  लग्न  कर  म्हणुन .बस , उर्वशीच  तिची  सुन  होणार .हे त्याने  मनाशी  पक्के  ठरवले .फक्त  गाडी  पुढे  कशी  न्यावी  हे त्याला  कळत  नव्हते .
त्याने  पुस्तके  तिच्या  जवळ  दिली .  अन  उगाच  हसला .पण  तिच्या  चेह-या  वरची  रेषही  हलली  नाही .
”  काल  फारच  पाउस  आला .तुम्ही  पोचलात  न  व्यवस्थित  घरी ” .यशने  उगाच  संभाषण  सुरु  केले .
” दिसतेय  न  इथे  धडधाकट  बसलेली .म्हणजे  व्यवस्थितच  पोचली  असणारच  आहे  की  नाही .” ती  तिरसटली . तो  सटपटलाच. पण  त्याने  चिकाटी  सोडली  नाही .

” मी  यश  देशपांडे .इंजिनीअर  आहे .मुंबईला  एका  खासगी  कंपनीत  कामाला  आहे . पंधरा  लाखाचं  पॅकेज  आहे .अन  स्वतःचा  फ्लॅट  पण  आहे . अन  मुख्य  म्हणजे  एकुलता एक  आहे  बरं  का .” तो  हसत  हसत  म्हणाला .
”  मी  विचारली  आहे  का  तुमची  माहिती?अन  ही  लायब्ररी आहे .वधुवर  सुचक  मंडळ  नाही .हे  तुम्ही  विसरले  दिसता  आहात . पुस्तक  घेउन  झाले  असेल  तर  मी  लायब्ररी बंद  करते .” ती  अत्यंत  रुक्षपणे  म्हणाली .
पण  यशने  हे  मनावर  घेतले  नाही . तो  उद्या  पुन्हा  येणार  होता .जाता जाता  त्याने एक  नजर  बघुन  घेतले , गळ्यात  मंगळसुत्र  तर  नाही न. तो  मनातुन  खुश  झाला .कारण  तिचा  गळा  रिकामा  होता .

तो  शीळ  वाजवतच  बाहेर  पडला .आता  त्याचं  डोकं  काम  करत  होतं .
माणुस  प्रेमात  पडला  की  फारच  हुषार  बनतो  का .तो  मनाशीच हसला .  अन  आपल्याला  मामा  कडचा  मुक्काम  वाढवावा  लागला  तरी  चालेल , पण  आता  उर्वशीच  आपली  स्वप्नपरी  आहे  हे  निश्चित  आहे . तसही  वर्क  फ्राॅम  होम  असल्याने  काळजी  नव्हतीच . तो  निघाला  पुस्तके  घेउन .
” यश  फारच  पुस्तक  वाचनाचा  छंद  जडला  रे  तुला “.मामी  त्याच्या  कडे  बघत  म्हणाली .
” अगं  आता  ही  घेतली  मी  काल ,  पण  बोअर  आहेत .ते  जरा बदलुन  आणतो .सुट्टीच  आहे  तर  वाचावी  म्हटलं  जरा  चांगली पुस्तके . कोणीतरी  म्हटलेच   आहे  न  ” वाचाल  तर  वाचाल “. मामी  तुमची  लायब्ररी  मात्र  फारच  छान  आहे  .”

मामी  फक्त  गुढ  हसली .अन  कामाला  लागली .
यशने पुन्हा  एकदा  आरशात  स्वतःला  न्याहाळले .अन  तो  आपल्या  प्रतिमेवर  खुश  झाला .
बाॅटल  ग्रीन  टीशर्ट  निळ्या   जिन्सवर  खुलला  होता .आज  उर्वशीला  आपल्या  दिसण्याची  दखल  घ्यावीच  लागेल .आज  काहीतरी  आपलं  घोडं  पुढे  न्यावच  लागेल  हे  मनाशी  घोकत  तो  बाहेर  पडला .
तो  लायब्ररीत  पोचला  तेंव्हा  उर्वशी  कोणाशी  तरी  फोनवर   व्यग्र  आवाजात  बोलत  होती . तिच्या  चेह-यावर  चिंता स्पष्ट  दिसत  होती .ती  सारखा  कपाळा  वरचा  घाम  पुसत होती .  हो  हो  मी  पोचतेच  लवकर  असं म्हणत  तिने  फोन  ठेवला . 

तिचं  यश  कडे  लक्षही  नव्हतं .यशने  मात्र  तिचं  बारीक  निरीक्षण  केलं  होतं .आज  पण  ती  कमाल  सुंदर  दिसत  होती .गुलाबी  ड्रेस  तिला  अगदी  खुलुन  दिसत  होता . यश  काहीतरी  बोलायचं  म्हणुन  म्हणाला ,
” आज  मी  लवकर   घेतो  बरं  पुस्तके .तुमचा  खोळंबा नको  व्हायला ” .यावर  तिने  फक्त  मान  डोलावली .खौटपणे काही  बोलली  नाही .
यश  पुस्तकांच्या  कपाटा  कडे  वळला .त्याने एकदा  तिरक्या  नजरेने  तिच्या  कडे  बघितले .ती  कपाळा  वरचा  घाम  पुसत  होती .हिची  तब्येत  तर  बरी  आहे  न .त्याला  लगेच अस्वस्थतता  आली .

काल  परवा  पर्यंत  आपण  हिला  ओळखतही  नव्हतो  अन  आता  हिची काळजीही  वाटतेय .  या  विचारातच तो  मग  पुस्तके  वरखाली  करत राह्यला .  तेवढ्यात  त्याला  धपकन  असा  जोरात  आवाज  आला .तो  गरकन  मागे  वळला .उर्वशी  खाली  पडली  होती .तो  धावत  गेला .
ती  बेशुद्ध  झाली  होती .त्याने  बाहेर  जाउन  रिक्शा  बोलावली अन  ताबडतोब  तिला  जवळच्या दवाखान्यात  नेले .
अति  विचाराने  चक्कर  आली .असे  डाॅक्टरांनी  सांगितले .सलाईन  लावावे  लागले .
नंतर  उर्वशी  शुद्धीवर  आली .

तिला  काही  कळत  नव्हते . तिचं  सुरु  झालं .माझी  मी  जाते  घरी.
पण  आता  मात्र  यश  चिडला “तुम्हाला ताकद  नाही .मी  सोडतो  घरी .सांगा  पत्ता .”
यश  पुढे  मग तिचे  काही  चालले  नाही .
ती  मुकाट्याने  रिक्शेत  बसली अन  पत्ता  सांगितला .
जसं  घर  जवळ  येत  होतं , ती  अजुन  अजुन  अस्वस्थ होत  होती .घर  आलं , ती  उडी  मारुन  उतरली .यशही तिच्या मागे मागे  गेला .

एका  वयस्क  माणसाने  दार  उघडले . ती तीरा  सारखी  आत  गेली अन  रडणा-या  बाळाला  जवळ  घेतले . यश  दिग्मुढ  होउन  हे  सगळं  बघत  होता .
वयस्क  माणुस  यशकडे  प्रश्नार्थक  नजरेने  बघत  होते .
मग  यशने  सगळं  सांगितलं .  त्या  माणसाने  एकदम  यशचे  हातच  धरले .अन गदगद  आवाजात  म्हणाले , ” उर्वशीची  मदत  करुन  तुम्ही  आमच्यावर  फार  उपकार  केले .कशी  परतफेड  करु  तुमची .नवीन  दिसताय या गावात  तुम्ही .”

” मी  दिनकर  कुलकर्णींचा  भाचा  आहे .मुंबईला  असतो .   लायब्ररीत  भेट  झाली  यांची .आज  फार  चिंतेत  दिसल्या  त्या .काय  झालय? बाळ  कोणाचं  आहे  हे ?” यश  सगळं ऐकायला अधीर  झाला  होता .
” मी  उर्वशीचे  वडिल  .ते  बाळ  आमच्या  उर्वशीचे आहे . आज  त्याला  थोडं  बरं  नसल्या  मुळे  ती  थोडी  चिंतेतच होती . त्यामुळेच  चक्कर  आली  असेल  तिला .आता  काय  सांगु  तुम्हाला  माझ्या  लेकराच्या   दुर्दैवाचे  दशावतार .लग्न  मोठ्या  थाटामाटात  करुन  दिलं  आम्ही  तिचं . लगेच तिला  दिवसही  राह्यले . फार  खुश  होती  हो पोर .पण  देवाला  हे  सगळं  बघवलं  नाही .

ही  सात  महिन्याची  गरोदर  असतांना  कार ॲक्सिडेंटमधे  जावई  गेले  आमचे . हा  धक्का  कसा  पचवणार  पोर . पार  रया  गेलीय   पोरीची . चिडचिडी झाली  आहे  ती  त्या  मुळे . तुमच्यावरही  कदाचित  चिडली  असेल .मनावर  घेउ  नका  यशजी . मनाने  खुप  सालस  आहे  हो  पोर  माझी  ” .त्यांचं  ते  केविलवाणं  बोलणं  ऐकुन  यश  हेलावुन  गेला .
त्याला  आतुन   तुटुन  आल्या  सारखं  वाटत  होतं . तो अस्वस्थ  झाला .
तेवढ्यात  उर्वशी  बाळाला  घेउन  बाहेर  आली .पाठोपाठ तिची  आईही  आली .बाळ  अजुनही  रडतच  होतं .
ती शांत  करत  होती .पण  बाळ  रडायचं  थांबत  नव्हतं .

यश  थोडा  पुढे  गेला .अन  म्हणाला “मी  घेउन  बघु  का ?”.
तिने थोडं  नाराजीनेच  बाळाला  यश  जवळ  दिलं . ती मुलगी  होती, अगदी  उर्वशीची  काॅपी  दिसत  होती .
यशला  आतुन  भरुन  आलं .ती  आपल्या  करवंदी  डोळ्याने  यश  कडे  टुकटुक  बघायला  लागली .अन  एकदम  शांत  झाली . यशने  तिला  घट्ट  जवळ  धरलं . अन  ती  शांत  झोपुन  गेली .
सगळे  नवलच  करत  राह्यले .
‘ह्या  कुठल्या  रेशीमगाठी .कसला  ऋणानुबंध  म्हणायचा  हा .” उर्वशीला  एकदम  भरुन  आलं . 

ती  धपकन  सोफ्यावर  बसली अन  ओक्साबोक्शी  रडायला  लागली .
यशलाही  त्या  तिच्या  परिस्थितीचं  अत्यंत  वाईट  वाटलं . त्याने  हळुवारपणे  बाळाला  गादीवर  झोपवलं अन  तो  निघाला .
तशी  उर्वशी  एकदम  उठली ,अन  ओलावल्या  आवाजात  म्हणाली , ” तुमचे  आभार  मानायला  माझ्याकडे  शब्द  नाहीत .”
” अहो  मग  कशाला  शब्द  शोधताय .फक्त  संध्याकाळी  न  चिडता , आम्हाला  चांगली  पुस्तके  निवडायला  वेळ  द्या  म्हणजे  झालं .अन  ही  तुमच्या  वाचनालयाची  किल्ली  घ्या .  भेटु  संध्याकाळी .” असं  हसत  म्हणत  यश  बाहेर  पडला .

घरी  जाताजाताच  त्याचा  विचार  पक्का  होत  गेला . तो  उर्वशीला  आधार  देणार . बाळासकट  तिला  आपलं करणार. पण  हे  सगळं  आईबाबांना  कसं  पटवायचं  हे  त्याला कळत  नव्हतं . काही  झालं  तरी  तो  आता  मागे  हटणार  नव्हता .
संध्याकाळी  उर्वशीशी  ब-याच  गप्पा  झाल्या .
मग  दुस-या  दिवशी  समुद्रा  वरची  फेरी  झाली . ती  पण  आता  यशमधे  गुंतत  चालली  होती .
यशला  हेच  तर  हवं  होतं .तिचं खुल्या दिलाने  त्याच्यात  गुंतणं .
समुद्रावर  गार  हवा  सुटली  होती. पश्चिम  दिशेला  केशरी  रंग  ओसंडुन  चालला  होता .सूर्य  मावळतीकडे  झुकत  होता .त्या  अशा  कातरवेळी  यशने  हळुच  तिचा  हात  हाती  घेतला , अन  मउ  आवाजात  त्याने  तिला  लग्नाची  विचारणा  केली .

उर्वशी  लाजेने  लालीलाल  झाली .पण  ती  निशब्द  होउन  लांबवर  बघत  राह्यली .जो  प्रश्न  विचारायला  ती  घाबरत  होती , तो  प्रश्न  शेवटी  तिला  धाडस  करुन  विचारावाच  लागला , ” माझं  बाळ  माझ्या  बरोबरच  राहिल .माझ्या  परीला  मी  सोडु  शकणार  नाही .”
” अगं  परी  शिवाय  आता  मीही  राहु  शकणार  नाही .ती  माझी  आहे .मी  तिला  वडिलांचे  प्रेम  देईल .तिला  कधीही  अंतर  देणार  नाही .तीच  आपली  मोठी  मुलगी  असेल .” यश  भरभरुन  बोलत  होता .
परीने  केंव्हाच  त्याच्या  मनात  स्थान   मिळवले  होते .

हे  ऐकुन , उर्वशीने  सुखावुन  यशच्या  खांद्यावर  मान  ठेवली.  आज  कितीतरी  दिवसाने  तिला  शांत  वाटत  होतं .आपलही  कोणी  हक्काचं  आहे  ही  कल्पना  सुखावह  होती .परी अन  ती  आता  यशच्या  भक्कम  हातात  सुखरुप  राहणार  होती.
हे  कळल्यावर  उर्वशीच्या  आईबाबांचा  आनंद  गगनात  मावत  नव्हता . त्यांना  तर  यश  देवदुतच  वाटत  होता .
आता  अमिताताईंना  हे  मात्र  पटणं  कठिण  आहे .याची  यशला  कल्पना  होतीच .
त्याने  आधी  मामा  मामीला   विश्वासात  घेतले .मामीला  उर्वशी  आवडत  होतीच .अमिता  ताई , अन  बाबांवर  मात्र  बाॅम्बच  पडल्या  सारखा  झाला .
त्यांना  यश  कडुन  ही  अपेक्षा  नव्हती .मामा  मामीने  अमिताताईंना  खुप  समजावले .पण  त्यांचं  मन  मानत  नव्हतं .

त्यांना  उर्वशीच्या  विधवा  असण्याचं  काही  वाटत  नव्हतं . त्यांना  बाळाचा  प्राॅब्लेम  वाटत  होता . पण  आता  यश  मागे  हटायला  तयार  नव्हता .नाईलाजाने  त्यांना  परवानगी  द्यावीच  लागली .
उर्वशीच्या  आईबाबांनी  लग्न  थाटामाटात  केले . उर्वशीचे  हे  दुसरं लग्न  असलं  तरी  यशचं  पहिलच  आहे याची  त्यांना  पुर्ण  जाणीव  होती .
त्यांनी  अमिताताईंची  सगळी  हौस , व मानपान  साग्रसंगीत  केले .तरीही  पुर्ण  लग्नभर  अमिताताई  नाराजच  होत्या .परीकडे  तर  त्या  अजिबात  बघत  नव्हत्या. 

यशचे  बाबा  मात्र  त्या  पिटुकली  कडे  बघुन  विरघळले होते. पण  अमिताताईंच्या  चेह-या  वरची  नाराजी  बघुन  ते  तिला  घेउही  शकत  नव्हते .यश  मात्र  परीचे एवढ्या  धुमेत  पण  लाड  करत  होता .हे  बघुन  तर  अमिताताईंचा  संताप  वाढत  होता .
उर्वशी  आणि  यशचा  संसार  सुरु  झाला .
उर्वशी  तशी  शांत  आणि  समंजस  असल्यामुळे  सगळं  ठीक  चाललं  होतं .पण  अमिताताई  मात्र  परीला  स्विकारायला  अजुनही  तयार  होत  नव्हत्या .
परी  तशी  फारशी  रडकी  नव्हतीच .  मोठी  गोड  मुलगी  होती .गोरीपान , गोबरे गाल , मोठे  करवंदी  डोळे अन  हसरी  होती . आता  ती  चार  महिन्याची  होती .

यशच्या  बाबांना  फार  मोह  व्हायचा , त्या  पिटुकलीला  घ्यायचा .पण  अमिताताईंची  नाराजी  त्यांना  ओढवुन  घ्यायची  नव्हती. खरं  म्हणजे दुपट्यावर  खेळणा-या  परीकडे  अमिताताई  कधी  कधी  चोरट्या  नजरेने  बघायच्या . तिचा  निरागस  चेहरा  त्यांना  मोहवायचा , पण  मन  मानत नव्हतं .
माझ्या  वंशाची  थोडीच  आहे  ही  पोरगी .भलेही  यश  मानत  असेल  तिला  आपली  मुलगी .पण  मी  मानणार  नाही म्हणजे नाही. त्यांनी  आपला  खालचा  ओठ  आवळुन  निश्चय  केला .अन  त्या  मंदिरात  निघुन  गेल्या .
उर्वशीला  काही  तक्रार नव्हती .  ती  आपली  आहे  त्यात  समाधान  मानत  होती .

त्या  दिवशी  नेहमी  सारखी  सकाळची  घाईची  वेळ  होती .  उर्वशी  आंघोळीला  गेली  होती . बाबा  बाहेर  गेले  होते .यश    पण  घरी  नव्हता .अन  खाली  दुपट्यावर  खेळणारी  परी  रडायला  लागली .
अमिताताई  पुजा  करत  होत्या . त्या  लक्ष   देत  नव्हत्या  परीकडे .
ती  जास्तच  रडायला  लागली .म्हणुन  त्या  डोकावल्या  तिच्या  जवळ .ती  गोड  हसली .
त्या आपण  होउन  खाली  बसल्या , अन  हात  समोर  केला , त्या  इवल्या  हाताने  त्यांचं  बोट  गच्च  धरलं .
तो  रेशिम बंध  त्यांना सोडता येईना .

पण  त्यांना  आपला  निश्चय  आठवला .ही  मुलगी  माझ्या  वंशाची  नाही .त्या  तटकन  उठल्या अन  तरातरा तिथुन  निघुन  गेल्या. उर्वशी  दारा  आडुन  हे  सगळं  बघत  होती .तिला  भरुन  आलं . आपल्या  परीला  आजीचं  प्रेम  मिळणारच  नाही  का?
परी  आता  पालथी   पडत  होती .तिच्या  बाललीला  अत्यंत  सुखावह  होत्या .
अमिताताईंचा  मनातला  निश्चय  ढासळत  होता .पण  अहंकार  आडवा  येत  होता .
त्या  सारख्या  तिच्या  कडे , कोणाचं  लक्ष  नसतांना  बघत  बसायच्या .
परी  पण  आजी  दिसली  की  जोरात  हसायला  लागायची .

त्या दिवशी त्या  बसल्या  असतांना ,ती सरकत  आली  अन  आजीचा  हात  धरला .त्यांनी  भावनावेगाने  तिला  जवळ  घेतलं .यश  दारा  मधुन  हे  बघत  होता .त्याच्या  डोळ्यांना  धारा लागल्या
पण  अजुनही  अमिताताई  म्हणाव्या  तशा  खुलल्या  नव्हत्या   ही  माझ्या  वंशाची  नाही .हे त्यांच्या  मनात  रुतुन  बसलं  होतं .
त्या  दिवशी  परी  तापाने  फणफणली  होती .सगळं  घर शांत  शांत  होतं .
अमिताताईही  अस्वस्थ  होत्या .त्यांचा इगो  त्यांना  परीला  जवळ  घेउ  देत  नव्हता .

तिचा  ताप  वाढत चालला  होता .सगळ्यांचा  धीर  सुटला .तिला  दवाखान्यात  ॲडमिट  करावं  लागलं .
यशचे  बाबा  तिला  भेटायला  निघत  होते , त्यांनी  कोरडेपणाने अमिताताईंना  विचारले  पण  त्या  निक्षुन  नाही  म्हणाल्या .
दोन  दिवस  झाले ,तिच्या  तापात  उतार  नव्हता .ती  काही  खात  नाही , सुस्त  आहे , हे त्यांना  कळत  होते .
आता  मात्र  त्या  अस्वस्थ  झाल्या .नाही  म्हटलं   तरी  परीच्या  असण्याची , तिच्या  आवाजाची , त्यांना  सवय  झालीच  होती .घर  सुनंसुनं   वाटत  होतं .

बाबा  आले .अन  ते  धपकन  सोफ्यावर  बसले , तसं   अमिताताईंच्या काळजा  मधे  लक्कन  हाललं .
त्या  कातर  स्वरात  म्हणाल्या, ” काय  झाल  हो , असे  का  बसलात  एकदम “.
बाबांनी फक्त  रोखुन  पाह्यलं  त्यांच्या  कडे , अन  तिरसटुन  ते  म्हणाले , ”  तुला  काय फरक  पडतोय  अमिता , तो  आपला  लहानगा  जीव , तापाने  फणफणलाय , पण  तुला  काय , तुझा  काय  संबंध  आहे  त्या  चिमुकलीशी .तुझ्या  मते  ती  तुझ्या वंशाची  नाही .मग  कशाला  उगाच  मानभावीपणे  चौकशी  करतेस?”.
हे  ऐकुन  अमिताताईंना  खुप  कसतरी  झालं . त्या उठल्या , त्यांच्या  पायाला  थरथरी  सुटली . तगमग  वाढली .

सारखा  परीचा  गोबरा गोरा  चेहरा  डोळ्यासमोर  येत  होता .तिने  धरलेला  घट्ट  हात  अजुनही  तो  रेशिम  स्पर्श  त्यांना हाताला   जाणवत  होता . तिचं  बोळकं  पसरुन  हसणं , ते  गोड हुंकार   यश  आल्यावर  आनंदाने  हातपाय  जोरजोरात  हलवणे हे  सगळं  त्यांना  स्वच्छ  दिसत  होतं . त्यांची  घालमेल  वाढली.  त्या  कासाविस  होउन  उभ्या  राह्यल्या .काही  सुचेना त्यांना .
”  मी  निघालोय  दवाखान्यात .जेवणासाठी  वाट  बघु  नको माझी .दुध  घ्यायला  आलो  होतो  परीसाठी ” बाबा  चप्पल  घालत  म्हणाले . तशा  देवघरात  देवा  समोर  उभ्या असलेल्या  अमिताताई  तीरा  सारख्या  धावत  आल्या अन  अजिजीने  म्हणाल्या ,
” मी  पण  चलतेय ” .
बाबांच्या  आश्चर्य चकित  चेह-या कडे न  बघता , त्या  गाडीत  जाउनही  बसल्या .

ते  दोघे  दवाखान्यात  पोचले .परी  एकदम  मलुल  वाटत होती .रडत  होती.अमिताताईंचा  जीव  एकदम  तुटला .त्यांना  कळत  नव्हते .हे  त्यांना  काय  होतेय .हा  कुठला ऋणानुबंध. या  गाठी  कुठुन  पडतात .
त्यांनी  भावनावेगाने  तिला  जवळ  घेतले .तशी  परी  एकदम  शांत  झाली .अन  तिने  आपले  दोन्ही  हात  अमिताताईंच्या  गळ्यात  गुंफले .तो  रेशमीपाश  त्यांना  सुखावत  होता .
तेवढ्यात  डाॅक्टर  राउंडला  आले , तशा  त्या  गदगद  आवाजात  म्हणाल्या , ” डाॅक्टर  साहेब ,  माझ्या  नातीला  लवकर  बरं  करा .अहो  आमच्या  वंशाचा  दिवा  आहे  ती .पहिली  बेटी  धनाची पेटी  अशी  गोड  नात  आहे  आमची .लवकर  घरी  न्यायचय तिला  द्या  औषध  मी  देता  तिला .” असं  म्हणत  त्यांनी  नर्स  कडुन  औषध  घेतले .

उर्वशीने  सुखाउन  यशच्या  खांद्यावर  मान  टेकवली .यशला  तर  रडु  आवरत  नव्हते .बाबांनाही  भरुन  आलं .त्यांनी अमिताताईंच्या  हातावर  फक्त  थोपटले .
डाॅक्टरही  हसले अन  म्हणाले , ”  अहो  आता , तुमची  नात  लवकरच  बरी  होईल .अशी  प्रेमळ  आजी  असल्यावर , तापाची  काय  बिशाद  आहे , मुक्काम  ठोकायची . तो जाणारच .काळजी  करु  नका .ती  आता  एकदम  ठीक  आहे .” हे  डाॅक्टरांचे  दिलासादायक  वाक्य  ऐकुन , अमिताताईंनी  आपले  डोळे  पुसले .

अन  त्या  हळुवारपणे उर्वशी , यश  कडे  बघत  म्हणाल्या , ”  तुम्ही  सगळे  थकले  आहात .घरी  जा .मी  थांबते  माझ्या  परी  जवळ ” असे  म्हणत  त्यांनी  परीला  घट्ट  ह्रदयाशी धरले  अन  यश  आणि  उर्वशी  निश्चिंत  मनाने  बाहेर  पडले .
उर्वशीने  यशचा  हात  घट्ट  धरला .शेवटी  परीने  आजीच्या  मनात  स्थान  मिळवलेच .बस  अजुन  काय  हवे  मला .तिला  यशची  वाचनालयातली  पहिली  भेट  आठवली .ती  आताही  आपली  चिडचिड  आठवुन  खजिल  झाली  .
खरच  तिला  फार  चांगलं  कुटुंब  मिळालं  होतं .सगळं  मळभ  निघुन  गेलं  होतं .स्वच्छ  प्रकाश  सगळीकडे  पसरला  होता .
तो  आनंद , समाधान , तृप्ती ,   यश  आणि  उर्वशीच्या  मनात  खोलवर  झिरपत  गेली .
त्यांनी  एकमेकांचे  हात  अजुनच  घट्ट धरले अन  सुखाच्या  वाटेवर  चालायला  सुरवात  केली .
© उज्वला सबनवीस

सदर कथा लेखिका उज्वला सबनवीस यांची असून त्यांच्याकडून रितसर लेखी परवानगी घेऊन आम्ही शेअर करीत आहोत. या लेखाचे सर्व हक्क लेखिकेकडे राखीव असून आमचा त्यावर काहीही अधिकार नाही..
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